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इम्तिहान ज़िन्दगी के

इम्तिहान ज़िन्दगी के
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वे नहीं जानती हैं वज्रपात क्या होता है
 या फिर पैरों तले ज़मीन का खिसकना
अचानक टूटकर तारों का ग़ुमशुदा हो जाना
या बहती हुई नदिया का बरसात में सूख जाना
पर उन्हें पता हो चुका है बहुत पहले से
कि इंतज़ार क्या होता है
लेकिन वह इंतज़ार ही नहीं रहा न
इसी का तो सबसे बड़ा सदमा है
कि पापा का इंतज़ार अब नहीं होगा कभी
जानती हैं पापा की दुलारी बेटियाँ
पापा की ज़ान व्यर्थ थोड़े ही गई है
यह सच है कि यादें आँसू साथ लाती हैं
पर शहीद की यादें कलेजा पत्थर का माँगती हैं
तो आँसुओं को फटकार दूर भगाना होगा
और अपने पथ पर डटकर चलना होगा
अब नहीं होगा मज़बूत बाहों का झूला
न छुट्टियों में लगेगा खुशियों का मेला
सिर पर उस घनी छाया के बिन जीना होगा
कड़ी धूप में ही तपकर ख़ूब निखारना होगा
ऐसे ही तो उनके सपनों को मुट्ठी में लाना होगा
पीतल तो बिखरे हैं बहुत  खरा सोना बनना होगा
यह तो पहला क़दम है बुझे  पाँवों का
चलते चलते क़दमों के निशान बनाना होगा
इम्तिहान ही तो है हर पल  ज़िंदगी का
छोटे इम्तिहानों से  क्यों घबराना होगा
चलो छोड़ दें ज़िदगी की सारी शिकायतें
अब पत्थरों में ही सुंदर फूल खिलाना होगा
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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*आरती , अंशु एवं अंशिका ......यानी उरी के आतंकी हमले में शहीद हुए बिहार रेजिमेंट के गया ज़िले के निवासी सुनील कुमार विद्यार्थी की बेटियों के साहस को सलाम ..... रविवार को शहीद हुए पिता की ये नन्हीं बेटियाँ सोमवार को परीक्षा देने स्कूल पहुँच गईं।हालांकि यह ऐसी पहली घटना नहीं है , परन्तु इन बच्चियों की उम्र को देखते हुए यह अद्भुत एवं बेमिसाल है।हमें देश की इन बेटियों पर गर्व है ।

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